विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल


 


तरक्की में वतन की नाम अपना जोड़ना होगा 


नयी नस्लों की खातिर हमको भी कुछ सोचना होगा 


 


जहां की रहगुज़र में हम कहीं पीछे न रह जायें 


पुरानी बंदिशों को आगे बढ़ कर तोड़ना होगा


 


किसी की रहनुमाई के भरोसे ज़िन्दगी खो दी


हमें ख़ुद रास्ता मंज़िल का अपनी खोजना होगा


 


हमें कुछ अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी याद रखनी हैं


वतन में हो कहीं गड़बड़ तो हमको बोलना होगा


 


रखेगी याद दुनिया तब हमें अपनी मिसालों में


जहां की बेहतरी को कोई रस्ता खोलना होगा 


 


रहें *साग़र* हमेशा हम ज़माने की ज़ुबानों पर 


शगूफा इक नया हर रोज़ हमको छोड़ना होगा


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


20/10/2020


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511