तूने कुछ वक़्त मेरे साथ गुज़ारा होता
ज़िन्दगी भर को तू फिर दोस्त हमारा होता
हुस्ने मतला--
पीठ में मेरी ये खंजर न उतारा होता
बेवफ़ाओं में यूँ चर्चा न तुम्हारा होता
हौसला तुम भी अगर देते मुझे तो सच में
मेरी परवाज़ का कुछ और नज़ारा होता
जब तेरे साथ नहीं थी तेरी परछाईं भी
*ऐसे आलम में कभी हमको पुकारा होता*
मेरे हाथों में अगर होता नसीबों का क़लम
तेरी तक़दीर को हर रुख से संवारा होता
आज सारा ही ज़माना दिखा मेरी जानिब
काश इनमें कहीं तेरा भी इशारा होता
जिस घड़ी तेरी ज़रूरत थी हमें ऐ *साग़र*
हमको उस वक़्त दिया तूने सहारा होता
🖋️विनय साग़र जायसवाल
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