ग़ज़ल
रह-ए- हयात को जो ख़ुशगवार करना था
तुम्हारे झूठ पे यूँ ऐतबार करना था
पयामे-हुस्न कई हमने यूँ भी ठुकराये
तमाम उम्र तेरा इंतज़ार करना था
मुहब्बतों को फ़कत खेल तुम समझते हो
तुम्हारा शौक हमें बेक़रार करना था
जुनूने-इश्क़ की हद देखनी थी गर तुमको
गिरेबाँ मेरा तुम्हें तार-तार करना था
वफ़ा के नाम पे जो लोग चढ़ गये सूली
मुझे भी हूबहू उनमें शुमार करना था
सुबूत प्यार का देना था इसलिए हमको
ख़िज़ाँ के दौर को फस्ल-ए-बहार करना था
सुराही जाम में डूबे हैं इस लिए *साग़र*
तेरे नशे का कहीं तो उतार करना था
🖋️विनय साग़र जायसवाल
16/10/2020
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