विनय साग़र जायसवाल

इस दौरे-कशाकश में कैसी ये सियासत है 


हंसों के कबीलों पर बगुलों की निज़ामत है


 


यह सोच के ही चुनना सिरमौर हवेली का 


इस घर की तिजोरी में हम सब की अमानत है


 


यह कह के गये पुरखे नस्लों से विरासत में


लम्हों की हिफ़ाज़त ही सदियों की हिफ़ाज़त है


 


यह देख के मुंसिफ़ ने सर पीट लिया अपना


चूहों की वकालत से बिल्ली की जमानत है


 


रखना ऐ वतन वालों सरहद पे निगाहों को 


हम ख़ुद ही सलामत हैं गर मुल्क सलामत है


 


कुछ हादसे ही ऐसे गुज़रे हैं ज़माने में


हर शख़्स की आँखों में जो आज भी दहशत है


 


इस दौर के मुजरिम भी आखिर हैं हमीं *साग़र* 


या आग धुआँ दहशत सब किस की बदौलत है


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


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