विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल


 


जिस घड़ी आज मेरे वो घर आयेगी 


यह ख़बर बिल यक़ीं दूर तक जायेगी


 


मेरे शाने पे रख्खा है तूने जो सर 


ज़ीस्त भर मुझको ख़ुशबू ये महकायेगी 


 


मुझसे कर ली अगर तूने कुछ गुफ्तगू 


अपनी हस्ती पे बरसों तू इतरायेगी


 


गा रहा है ज़माना ही मेरी ग़ज़ल


एक दिन तू ख़ुशी से इसे गायेगी


 


मैंने इक़रारे-उल्फ़त अगर कर लिया 


अपने आँचल को गा गाके लहरायेगी


 


राज़े-उल्फ़त समझ लेगा हर इक बशर 


तेरी मेरी नज़र यूँ जो टकरायेगी


 


मेरी आँखों में *साग़र* हैं अफ़साने जो 


ता कयामत तू पढ़ पढ़ के मुस्कायेगी


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


9/10/2020


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511