विनय सागर जायसवाल

गीत --


 


मनभावन प्रतिबिम्ब तुम्हारे ,जब सुधि में उतराये हैं ।


पाँव तले कंटक भी हों यदि हम खुलकर मुस्काये हैं ।।


 


क्या दिन थे वे जो कटते थे लुकाछिपी के खेलों में 


बन आती थी अनायास जब मिल जाते थे मेलों में


चूड़ी ,कंगन ,बिंदिया, गजरा देख-देख हर्षाये हैं ।।


मनभावन ---------------


 


बागों में हर दिवस मिलन था भौंरा -तितली जीवन था 


छोटे से घर का आँगन भी लगता कोई मधुवन था 


नाव कागज़ी घेर-घरौंदे हमने बहुत बनाये हैं ।।


मनभावन----------------


 


खेल-खिलौने खेल-खेलकर एक दिवस हम बड़े हुये


अनसुलझे कुछ प्रश्न हमारे मन-मस्तक में खड़े हुये


उन प्रश्नों के सम्मुख हमने अपने शीश झुकाये हैं ।।


मनभावन------------


 


विरहा की आँधी ने जब छीन लिये स्वप्निल गुब्बारे


नीलगगन को ताक रहे थे हम अचरज से मन मारे


विधि के लेखों पर हमने भी सौ-सौ दोष लगाये हैं ।।


मनभावन----------------


 


व्यर्थ हुये वंदन -आराधन व्यर्थ हुये संकल्प-वचन


डूब गये दृग गंगाजल में सब स्वप्नों के राजभवन


*साग़र* सूने मंदिर में भी हमने दीप जलाये हैं ।।


मनभावन ----------------


पाँव तले---------------


 


🖋विनय साग़र जायसवाल बरेली


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