ग़ज़ल
आँधियों में यही बेकली रह गई
शाखे-गुल कैसे अब तक तनी रह गई
पंचों के ज़ोर से मिल गये हाथ पर
*फाँस दिल में तो फिर भी चुभी रह गई*
होश उड़ने लगे बेख़ुदी की तरफ़
जाम बोतल में लेकिन ठनी रह गई
आइना बारहा तुमने देखा बहुत
धूल चेहरे पे कैसे जमी रह गई
वो सिकन्दर पुरू दोनों ही मिट गये
पर मिसालों में वो दुश्मनी रह गई
बेटे पोते बहू सब मगन दिख रहे
माँ के आँचल में अब भी नमी रह गई
एक अबला ने चीखा सड़क पर बहुत
बंद कमरे में ज़िन्दादिली रह गई
खोया क्या-क्या न *साग़र* रह-ए-इश्क़ में
याद ही सिर्फ़ उसकी बची रह गई
🖋️विनय साग़र जायसवाल
9/10/2020
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