ग़ज़ल
ज़ीस्त ख़ुद दुश्वार करता आदमी
होड़ की दुनिया में खोया आदमी
आपको यह हर तरफ़ मिल जायेगा
अपनी तारीफ़ों में डूबा आदमी
हैं लुटेरे हर तरफ़ बाज़ार में
देखिये कितना लुटेगा आदमी
नोचते हैं लोभ लालच हर तरफ़
किस तरह इनसे बचेगा आदमी
रोटी कपड़ा और इक घर के लिए
रात दिन घुटता है पिसता आदमी
हुक़्म सरकारी बदलते रोज़ हैं
हाय कब तक यूँ पिसेगा आदमी
आसमाँ को वो ही *साग़र* छू सका
वक़्त के जो साथ बदला आदमी
🖋️विनय साग़र जायसवाल
8/10/2020
🖋️विनय साग़र जायसवाल
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