विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल


 


इक नज़र तुमने जो निहारा है


दिल पे क़ाबू नहीं हमारा है


 


ख़्वाहिशें हो रहीं हैं सब पूरी


साथ जबसे मिला तुम्हारा है


 


प्यार से इक नज़र इधर देखो 


कितना ख़ुशरंग यह नज़ारा है


 


नाख़ुदा यह तेरी बदौलत ही


मुझको हासिल हुआ किनारा है


 


हूक उठती है इस तरह दिल में


जैसे तुमने मुझे पुकारा है


 


बेवफ़ा कह के तूने ऐ ज़ालिम


दिल में खंजर सा इक उतारा है 


 


तेरे आने से ही मेरे *साग़र* 


चमका क़िस्मत का यह सितारा है


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


 


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...