*वो अमर कहानी हो गए*
तिरंगे के ख़ातिर,
मुल्क की हिफाज़त करने,
माँ भारती के आँचल में
बहा अंतिम दृगजल,
वो इक अमर कहानी हो गए,
बहती धारा का पानी हो गए।।
दुश्मन को कर परास्त,
नए सवेरे की रोशनी बने,
बदन से हारे वो
सूरज से चमकते रहे,
ढ़लती साँझ की निशानी हो गए,
वो इक अमर कहानी हो गए।
माँ की ममता के मोती बने,
पिता ने चढ़ाया सूरज देश को,
बहिन की राखी बनी रक्षासूत्र
पत्नी ने गौरव का सिन्दुर भरा,
बेटियाँ खुशियाँ चढ़ाकर महादानी हो गए,
वो इक अमर कहानी हो गए।।
मोहल्ले का फूल खुश्बू दे गया,
मित्रों की टोलियां एहसास करती है,
उसके बिन दिन आता संध्या ढ़लती
वो रहा कहीं तो होगा
माठी के कण सुहानी हो गए,
वो इक अमर कहानी हो गए।।
रचनाकार ~ कमल कालु दहिया
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