आचार्य गोपाल जी

प्रभात प्रथम रश्मि, अब लगी छिटकने । 


तरु टहनी पर बैठ विहंग, लगी चहकने ।


खिलने लगी उपवन में कलियां, सारा जग है लगा महकने ।


देख छटा अनुपम प्रकृति की ,तन मन मेरा लगा बहकने ।


 


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले


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