आचार्य गोपाल जी

ख़ुदा ख़ुद को कहता है,


ख़ुद के वज़ूद का पता नहीं।


दवा दर्दे दिल की चाहता है,


दिल से छोड़ा कोई खता नहीं ।


खुद खोजनी पड़ती है मंजिल,


कोई भी रास्ता देता बता नहीं ।


आजाद अकेला रहकर कोई,


प्रेम सबसे सकता जता नहीं ।


 


 🌹🙏🌹सुप्रभात🌹🙏🌹


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...