भानु भए उद्धत उगने को,
चहु ओर उषा की अरुणाई ।
नव-नव पुष्प पसरे धरा पर,
प्रभा नूतन आनन्द है लाई ।
मंगल बेला देखो है आई,
विहग बजा रहे शहनाई ।
सब ओर मचने लगा शोर,
हो रही है निशा की विदाई।
गीत गाएं सब सदा प्रेम के,
ईश रहे सब पर सदा सहाई।
✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले
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