3-वीरंगना लक्ष्मी बाई
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वीरांगना लक्ष्मीबाई की बचपन से सुनी कहानी थी ।
अंग्रेजों के सीने में अब तक पड़ी अमिट निशानी थी ।
सुंदर और मध्यम कद काठी की छवि निराली थी।
आँच न आए देश पर वह क्रोध की लाली थी ।
अंग्रेजों के षड्यंत्र को पहले उसने भाँपी थी।
हर क्रांतिकारी से मदद की गहराई उसने नापी थी ।
अपनी झाँसी मेैं न दूँगी कह कर एक हुंकार भरा।
पेंशन पर गुजर न करूँगी सम्मान का चिंघाड़ भरा ।
उनकी एक झलक पाने को अंग्रेज भी बेताब रहे ।
भाव भंगिमा विद्वता पूर्ण नैन नक्श सुंदर रहे ।
न गोरी थी न काली एक सलोना रूप था।
स्वर्ण बालियाँ, श्वेत वसन और न कोई आभूषण था।
लैंग की तारीफों का सादगी पूर्वक जवाब दिया।
मदद करें आप गरीबों का शिष्टता का पुल बाँध दिया।
लक्ष्मीबाई को भारतीय राजाओं से लड़ना पड़ा।
अंग्रेज तो गैर थे अपनों से भी भिड़ना पड़ा।
हिम्मती महिला पुरुषों को युद्ध के लिए तैयार किया ।
पूरे जोश व ताकत से सात दिनों तक युद्ध किया।
कमजोर होता देख दामोदर को पीठ पर बाँध लिया।
छोटी सैन्य टुकड़ी संग झाँसी से बाहर निकल लिया।
कह गये फिरंगी सर ह्यू रोज विद्रोहियों में बात कम थी ।
लक्ष्मीबाई बहादुर नेतृत्व कुशल बागियों बीच वही मर्द थी।
अर्चना पाठक 'निरंतर'
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