डॉ.राम कुमार झा निकुंज

 बने दीप मुस्कान


 


दीप जले सुख सम्पदा , बने दीप मुस्कान।


जले दीप भारत चमन , जले दीप बलिदान।।१।।


 


जले दीप परमार्थ का , जले दीप गणतंत्र।


संविधान दीपक जले , संघ शक्ति हो मंत्र।।२।।


 


सज दीपों की आवली , ज्योतिर्मय संसार।


प्रेम त्याग सत् न्याय पथ , मानवता उपहार।।३।।


 


भेद भाव छल घृणा मन ,लोभ शोक सब मोह।


जले दीप सब पाप जग, अरुण प्रीत आरोह।।४।।


 


बनूँ मीत का गीत मैं , बाँटू मुख मुस्कान।


सुख दुख में नवदीप बन , धरूँ रूप इन्सान।।५।।


 


तरसी जो वर्जर धरा , बरसूँ बन घनश्याम।


शस्य ऊर्वरित खुशनुमा , हो जीवन अभिराम।।६


 


लघु जीवन हो तब सफल, परहित हो उपयोग।


सुख वैभव निज गात्र सब, धरा रहे सब भोग।।७।।


 


दीप जले सहयोग का , मन वसुधा परिवार।


न्याय दीप सब जन सुलभ, समता हो आधार।।८।।


 


महाविजय माँ भारती ,जले शौर्य का दीप।


बने तिरंगा अल्पना , सेवा वतन महीप।।९।।


 


जले शान्ति की दीपिका, हरित भरित भूधाम।


कवि निकुंज शुभकामना, बोलें जय श्रीराम।।१०।।


 


अंधेरा जग का मिटे , जले दीप सम्मान।  


सत्य नेह आलोक से , जगमग हो अवदान।।११।। 


 


पर्व विजय दीपावली , जले ज्योति अविराम।


सद्भावन निर्मल प्रकृति , बने लोक सुखधाम।।१२।।


 


दीपोत्सव की ज्योति जग , फैले नैतिक मूल्य।


बाँटे खुशियाँ मुदित मन,जीवन मनुज अतुल्य।।१३।।


 


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


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