*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-25
अस कहि तुरतै चला बिभीषन।
त्यागि लंकपुर तन-मन-हिय सन।।
संत-अवग्या काल समाना।
सुख-सम्पति अरु उमिरि गवाँना।।
रावन-नास अवसि अब होई।
बंधु बिभीषन जस जे खोई।
हरषित होइ बिभीषन चलई।
राम-दरस जे तुरंतहिं पवई।
तरी अहिल्या छुइ पद रामा।
पाइ चरन भे दंडक धामा।।
सीय-हृदय चरनन जे लागा।
कपटी मृग पाछे जे भागा।।
सिय-हिय-सर-सरोज जे चरना।
बड़ मम भागि तिनहिं अब धरना।।
आजु दरस मैं पाउब तिन्ह कै।
पाद-त्राण भरत-उर जिन्ह कै।
करत सोच अस सागर लाँघा।
पहुँचा निकट कपिन्ह सो बाघा।
आवत देखि बिभीषन बानर।
सोचे जनु रिपु-दूत निसाचर।।
देखि बिभीषन कहा कपीसा।
रावन-अनुज आय जगदीसा।।
राच्छस-माया राच्छस जानहिं।
भेष बदलि सभ कछु करि डारहिं।।
मम मन कहहि सुनहु रघुराई।
भेद हमारा जानन आई।।
एका रखब बाँधि हम सबहीं।
सुनि प्रभु राम तुरत अस कहहीं।।
सरनागत-रच्छा मम धरमा।
जदपि कहेउ नीतिगत मरमा।।
सुनि प्रभु-कथन मुदित हनुमाना।
सरनागत-रच्छक भगवाना।।
दोहा-अनहित जानि के त्यागहीं, सरनागत जे लोग।
मिलहु न तिन्ह बड़ नीच ते,तजु इन्ह जानि कुभोग।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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