डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-25


अस कहि तुरतै चला बिभीषन।


त्यागि लंकपुर तन-मन-हिय सन।।


       संत-अवग्या काल समाना।


       सुख-सम्पति अरु उमिरि गवाँना।।


रावन-नास अवसि अब होई।


बंधु बिभीषन जस जे खोई।


      हरषित होइ बिभीषन चलई।


      राम-दरस जे तुरंतहिं पवई।


तरी अहिल्या छुइ पद रामा।


पाइ चरन भे दंडक धामा।।


      सीय-हृदय चरनन जे लागा।


       कपटी मृग पाछे जे भागा।।


सिय-हिय-सर-सरोज जे चरना।


बड़ मम भागि तिनहिं अब धरना।।


     आजु दरस मैं पाउब तिन्ह कै।


      पाद-त्राण भरत-उर जिन्ह कै।


करत सोच अस सागर लाँघा।


पहुँचा निकट कपिन्ह सो बाघा।


      आवत देखि बिभीषन बानर।


       सोचे जनु रिपु-दूत निसाचर।।


देखि बिभीषन कहा कपीसा।


रावन-अनुज आय जगदीसा।।


      राच्छस-माया राच्छस जानहिं।


      भेष बदलि सभ कछु करि डारहिं।।


मम मन कहहि सुनहु रघुराई।


भेद हमारा जानन आई।।


      एका रखब बाँधि हम सबहीं।


       सुनि प्रभु राम तुरत अस कहहीं।।


सरनागत-रच्छा मम धरमा।


जदपि कहेउ नीतिगत मरमा।।


      सुनि प्रभु-कथन मुदित हनुमाना।


       सरनागत-रच्छक भगवाना।।


दोहा-अनहित जानि के त्यागहीं, सरनागत जे लोग।


         मिलहु न तिन्ह बड़ नीच ते,तजु इन्ह जानि कुभोग।।


                    डॉ0हरि नाथ मिश्र


                      9919446372


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