डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*गीत*(16/16)


कहे बहन की प्रीति सदा ही,


भइया रीति चलाते रहना।


परम विमल रिश्ता यह जग में-


इसको सतत निभाते रहना।।


 


यह संबंध बहन-भाई का,


है कृष्ण-द्रौपदी के जैसा।


किया हरण जब चीर दुशासन,


पाया न किसी ने फल वैसा।


पड़े आबरू जब संकट में-


तुम इतिहास बनाते रहना।।


       इसको सतत निभाते रहना।।


 


यम-यमुना प्रिय भाई-बहना,


का रिश्ता शुचि-पौराणिक है।


भ्रात-बहन का रिश्ता इनका,


अति प्राचीन प्रामाणिक है।।


यम की भाँति सुनो हे भइया-


 घर पर तुम भी आते रहना।।


        इसको सतत निभाते रहना।।


 


 


ऐसे बहुत प्रमाण मिलेंगे,


भाई-बहनों के रिश्तों के।


किए त्याग हैं अद्भुत भाई,


त्याग हों जैसे फरिश्तों के।


मान सनातन कर्ज इसी को-


भइया सदा चुकाते रहना।।


       इसको सतत निभाते रहना।।


 


यदा-कदा जब त्यौहारों पर,


 नहीं मिलन जब हो पाता है।


अचरज नहीं सुनो हे भइया,


ऐसा अक्सर हो जाता है।


फिर भी कहती बहना तुमसे-


नूतन स्वप्न सजाते रहना।।


      इसको सतत निभाते रहना।।


 


बड़े भाग्य से रिश्ते मिलते,


जीवन में भाई-बहनों के।


भ्रात-बहन ही परिवारों के,


हैं अनुपम हिस्से गहनों के।


यदि गहने की कड़ी विखंडित-


भइया तुम्हीं बनाते रहना।।


      परम विमल रिश्ता यह जग में-


       इसको सतत निभाते रहना।।


                © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                    991944637


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