डॉ0 हरि नाथ मिश्र

त्रिपदियाँ


हे रघुनंदन,तेरा वंदन,


तुमसे ही है जग में नंदन।


विश्व करे तेरा अभिनंदन।।


 


वीणा-वादिनि, तुम्हें प्रणाम,


सकल कला की तुम्हीं हो धाम।


मिले अपार सुख लेते नाम।।


 


चहुँ-दिशि फैला है अँधियारा,


ज्ञान-दीप से हो उजियारा।


चलो,जलाएँ इसे दुबारा।।


 


चलो,पथिक को राह दिखाएँ,


भाव दुश्मनी के बिसराएँ।


अज्ञानी को पाठ पढ़ाएँ।।


 


राग-द्वेष से दूर रहें हम,


पालें कभी न मन में वहम।


प्राणी-रक्षा हितकर सुकरम।।


      © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


          9919446372


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