त्रिपदियाँ
हे रघुनंदन,तेरा वंदन,
तुमसे ही है जग में नंदन।
विश्व करे तेरा अभिनंदन।।
वीणा-वादिनि, तुम्हें प्रणाम,
सकल कला की तुम्हीं हो धाम।
मिले अपार सुख लेते नाम।।
चहुँ-दिशि फैला है अँधियारा,
ज्ञान-दीप से हो उजियारा।
चलो,जलाएँ इसे दुबारा।।
चलो,पथिक को राह दिखाएँ,
भाव दुश्मनी के बिसराएँ।
अज्ञानी को पाठ पढ़ाएँ।।
राग-द्वेष से दूर रहें हम,
पालें कभी न मन में वहम।
प्राणी-रक्षा हितकर सुकरम।।
© डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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