डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-17


चलत-चलत तहँ कपि-गरजन तें।


भयउ निपात सिसुन्ह गरभनतें।।


     सिंधु-पार अति लाघव कीन्हा।


      किलकिलाइ हरषित करि दीन्हा।।


सभ कपि मिलि हनुमान सराहहिं।


लागहि पुनर जनम ते पावहिं ।।


    लखि हनु प्रमुदित सकल समाजा।


    समुझि गए भे प्रभु कै काजा ।।


हरषित सभ सुनि कथा-कहानी।


प्यासा मुदित पाइ जनु पानी।।


    अंगदादि सुनि सभ हरषाने।


     प्रभु कहँ सभ जब चले बताने।।


जाइ बिपिन सभ बहु फल खावा।


आयसु जब अंगद कर पावा।।


    रोकहिं तिन्ह तहँ जब रखवारे।


    मुष्टि मारि कर तिनहिं पछारे।।


अंगद नासि बागु सुनु राजा।


आवा इहँ लइ सकल समाजा।।


      सुनि रखवार-सोर कपि-राजा।


       गवा समुझि भे प्रभु कै काजा।


कोउ नहिं खाइ सकत फल मोरा।


बिनु सिय-सुधि लाए कोउ छोरा।।


     अस सुग्रीव मनहिं महँ लावा।


      हरषित कपिन्ह मिलन तहँ धावा।।


कुसलइ-छेमु पूछि तब जाना।


प्रभु कै काजु कीन्ह हनुमाना।।


    हरषित भइ सभ प्रभु पहँ गयऊ।


    नाचत-कूदत-उछरत रहऊ ।।


फटिक-सिला पे अनुज समेता।


बैठि रहे प्रभु कृपा-निकेता।।


     धाइ चरन कपि प्रभु कै धरहीं।


      मान-भाव प्रभु सभकर करहीं।।


पूछे कुसल-छेमु रघुनाथा।


छुइ-छुइ कपिन्ह देह अरु माथा।।


दोहा-लइ असीष प्रभु कै सभें,पुलकित भे मन-गात।


        प्रभु-दरसन केतनहुँ मिलै,हिय-मन-चित न आघात।।


                           डॉ0 हरि नाथ मिश्र।


                            9919446372


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