डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-16


पूँछ बुझाइ धारि लघु रूपा।


गया निकट पुनि सीय अनूपा।


    कर जोरे कपि बिनती कीन्हा।


     मातु देउ कोउ आपनु चीन्हा।।


चूड़ामनि उतारि तब सीता।


दीन्हीं कपिहिं बिनू भयभीता।


    जाइ कहेउ प्रभु मोर प्रनामा।


    निसि-बासर सुमिरहुँ प्रभु-नामा।


जे सुमिरै प्रभु बिनु छल-संसय।


ताहिं मिलैं प्रभु जग मा निस्चय।।


    दीन दयालू अंतरजामी।


    पुरवहिं इच्छा सभकर स्वामी।।


जाइ कहहु तुम्ह जे कछु देखा।


निज करतब जे कीन्ह बिसेखा।।


     प्रभुहिं कहेउ जयंत कर गाथा।


     प्रभु-सर-तेज नाइ निज माथा।।


जदि प्रभु मास एक नहिं अइहैं।


प्रानहिं मोर कबहुँ नहिं पइहैं।।


दोहा-बहु समुझाइ-बुझाइ सिय,छूइ चरन हनुमान।


        धीरजु ताहि धराइ के,कीन्हा तुरत पयान।।


                       डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                        9919446372


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