सजल(14/14)
कैसा आज ज़माना है,
पापी-अघी बचाना है।।
धन को लूट गरीब का,
भरना निजी खज़ाना है।।
चंदन-तिलक लगा माथे,
अत्याचार मचाना है।।
राजनीति को दूषित कर,
अपना काम बनाना है।।
लोक-लाज का बंधन तज,
नंगा नाच नचाना है।।
घृणा-भाव कर संचारित,
निज सिक्का चमकाना का।।
लेकिन, फिर से सुनो मीत,
नया ज़माना लाना है।।
नूतन सोच-मशाल जला,
कुत्सित तिमिर भगाना है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें