डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सजल(14/14)


कैसा आज ज़माना है,


पापी-अघी बचाना है।।


 


 धन को लूट गरीब का,


भरना निजी खज़ाना है।।


 


चंदन-तिलक लगा माथे,


अत्याचार मचाना है।।


 


राजनीति को दूषित कर,


अपना काम बनाना है।।


 


लोक-लाज का बंधन तज,


नंगा नाच नचाना है।।


 


घृणा-भाव कर संचारित,


निज सिक्का चमकाना का।।


 


लेकिन, फिर से सुनो मीत,


नया ज़माना लाना है।।


 


नूतन सोच-मशाल जला,


कुत्सित तिमिर भगाना है।।


        ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


            9919446372


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