डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-11


 


जानत नहिं प्रभु पता-ठेकाना।


यहिं तें भवा नहीं इहँ आना।।


   नहिं मैं सकहुँ तुमहिं लइ जाई।


    बिनु प्रभु-आयसु नहिं करि पाई।।


माते करहु न कछु मन रोसू।


यहि मा कछुक नहीं प्रभु-दोसू।।


     अइहैं इहाँ अवसि रघुबीरा।


      तुमहिं ले जइहैं धरु हिय धीरा।


संग कपिन्ह लइ अइहैं स्वामी।


बधिहैं खलु रावन खल-कामी।।


     तुमहिं छुड़ा लइ जइहैं माई।


     रहहु मगन मन-चित मुसुकाई।।


सीता-मन संसय तब भयऊ।


बड़-बड़ भट रावन दल रहऊ।।


    होके तब बिराट हनुमंता।


    दइ भरोस सिय बल-भगवंता।।


लघु पुनि रूप पवन-सुत भवहीं।


प्रभु कै कृपा पंगु गिरि चढ़हीं।।


    सुनि कपि-बचन तुष्ट भइँ सीता।


    दइ असीष बल-बुद्धि बिनीता।।


प्रिय जन जानि राम कै कपि के।


अजर-अमर भव कह सिय डट के।।


दोहा-तुरत कहेउ तब पवन-सुत,हरषित मन-चित गातु।


       दीन्ह असीष मों सीय अब,अचल भगति कै मातु।।


                   डॉ0 हरि नाथ मिश्र।


                     9919446372


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