*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-24
मुनि पुलस्ति सिष्य लइ आवा।
अस सनेस मैं तुमहिं सुनावा।।
मुनि-सनेस मलवंतहिं भावा।
सुनि सनेस सचिवहिं सुख पावा।
दसमुख प्रभु-बखान नहिं भावै।
भागु दूर कहि क्रोध जतावै ।।
माल्यवंत तब निज गृह गयऊ।
तदपि बिभीषन कहतै रहऊ।।
सुबुधि कुबुधि रहहीं इक साथा।
कह अस सो झुकाइ निज माथा।
बेद-पुरान-नीति अस कहहीं।
संपति रहै सुबुधि जहँ रहहीं।।
नाथ कुबुधि बड़ घातक होवै।
आए तासु बिपति नर ढोवै ।।
सुनहु नाथ सीता कुल-नासक।
प्रीति तासु सभ निसिचर घातक।।
रखहु लाजि नाथहिं मम बचना।
सीता भेजि अहित नहिं अपुना।।
सुनि श्रुति-सम्मत,नितिगत बचना।
रावन कहा काल तव रसना।।
जीयसि खाइ मोर अन-पानी।
मम रिपु-गुन तुम्ह करत बखानी।
जानसि नहिं मैं निज बल-बूता।
जीता सभ बलवान अभूता।
जल बसि बैर मगर कस सोहै।
इहँ रहि प्रीति तपस कस मोहै।।
करि प्रहार रावन निज लाता।
कह जा करहु तपस सँग बाता।
तदपि बिभीषन कह कर जोरे।
मिलि प्रभु राम होय हित तोरे।
तुम्ह मारे नहिं मोर अनादर।
तुम्ह पितु सम कुरु राम समादर।
दोहा-पुनि-पुनि कहै बिभीषनै,रावन-मन न सुहाय।
कह सो तुम्ह अब काल बस,नहिं कोउ तोर सहाय।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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