डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-23


 


रावन सुनि मंदोदरि-बचना।


बिहँसि कहा घमंड सनि रसना।।


     जासु नाम सुनि काँपै सबहीं।


      पत्नी तासु डरै कस भवहीं।।


नारी-हिय संसय बहु रहहीं।


सुभ कारजु महँ अपि ते डरहीं।।


      जदि बानर-सेना इहँ अवहीं।


       तिनहीं खाइ निसाचर लरहीं।।


अस कहि चला सभा दसकंधर।


उलटी बुद्धि बिपति जब सिर पर।।


     सिंधु पार करि सेना आई।


     सचिवन्ह कहा बताउ उपाई।।


सभ हँसि टारि दीन्ह अस बाता।


चुप तुम्ह साधि रहउ हे त्राता।।


     जुद्ध सुरासुर बिनु श्रम जीते।


      बानर हों मुरई किन्ह खेते ।।


सचिव-बैद अरु गुरु नहिं नीका।


जे नहिं देहिं सलाह स्टीका ।।


     नीति कहै इन्हकर प्रिय बचना।


      घातक होय जदपि मधु रसना।।


मनहिं समुझि तहँ आइ बिभीषन।


माथ नाइ रावन के चरनन ।।


      आयसु लेइ बैठि निज आसन।


       कह सुनु हे मम भ्रात दसानन।।


जौं चाहसि निज कुल-कल्याना।


सुभगति-सुजसु-सुबुद्धि-खजाना।।


     लखहु न अब तुम्ह ई परनारी।


      जस लखि चंद चौथु अघ भारी।।


अंड-पिंड-स्वेतज-स्थावर।


बिधि जग-निर्मित प्रकृति चराचर।।


     सभ महँ सूक्ष्म रूप प्रभु ब्यापैं।


      होइ अदृस्य जीव-बपु थापैं।।


सुनहु भ्रात,राम भुवनेस्वर।


अज-अनादि,अजित-अखिलेस्वर।।


      ब्यापक राम सकल जग माहीं।


       ब्रह्म अभेदहिं जानउ ताहीं।।


मनुज सरीर धारि प्रभु रामा।


दुष्ट-दलन करिहैं हितकामा।।


दोहा-काम-क्रोध,मद-लोभ तजि,भजहु राम हे भ्रात।


        रच्छक गो-सुर-बेद प्रभु, रच्छक धरमहिं तात।।


                          डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                            9919446372


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