डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सजल


मात्रा भार-16


इस भारत भू पर आस जगा,


अपना इसपर विश्वास जगा।।


 


मातृ-भूमि की सेवा के प्रति,


मन में अपने उल्लास जगा।।


 


त्याग और बलिदान लक्ष्य हो,


भोग के भाव न विलास जगा।।


 


जिनमें नहीं भला की भावना,


भाव-शून्य मन उदास जगा।।


 


शिक्षा-दीक्षा जहाँ अधूरी,


जा,शिक्षा-क्रांति-विकास जगा।।


 


असहायों की कर सहायता,


जला आस-दीप हुलास जगा।।


 


मानवता ही धर्म एक है,


जन में ऐसा आभास जगा।।


       © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


           9919446372


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