*दोहे*
सभी सुहागन नारियाँ, रख कर व्रत-उपवास।
अपने पति-परिवार की,चाहें सतत विकास।।
शुचि मन पूजा जो करे,उसका हो कल्याण।
ऋषि-मुनि सारे संत सँग,कहते वेद-पुराण।।
जीवन को उत्सव समझ,कभी न समझो भार।
रहो सदा इस भाव से, होगा हर्ष अपार।।
कहते हैं उपवास से,रहता स्वस्थ शरीर।
प्रभु-वंदन से सुख मिले,चंचल मन हो थीर।।
कुल-परिवार-परंपरा,और विमल संस्कार।
शुचि चरित्र निर्मित करें,मन में हो न विकार।।
स्वच्छ सोच,निर्मल चरित,और भाव उपकार।
जिसका ऐसा आचरण,उसका हो सत्कार।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें