डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे*


सभी सुहागन नारियाँ, रख कर व्रत-उपवास।


अपने पति-परिवार की,चाहें सतत विकास।।


 


शुचि मन पूजा जो करे,उसका हो कल्याण।


ऋषि-मुनि सारे संत सँग,कहते वेद-पुराण।।


 


जीवन को उत्सव समझ,कभी न समझो भार।


रहो सदा इस भाव से, होगा हर्ष अपार।।


 


कहते हैं उपवास से,रहता स्वस्थ शरीर।


प्रभु-वंदन से सुख मिले,चंचल मन हो थीर।।


 


कुल-परिवार-परंपरा,और विमल संस्कार।


 शुचि चरित्र निर्मित करें,मन में हो न विकार।।


 


स्वच्छ सोच,निर्मल चरित,और भाव उपकार।


जिसका ऐसा आचरण,उसका हो सत्कार।।


              डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                9919446372


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...