पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-21
आए तहँ बहु कपि अरु भालू।
गरजहिं-तरजहिं बहु बिक़रालू।
निरखि-निरखि कपि-भालू-सेना।
कृपा करहिं प्रभु भरि-भरि नैना।
पाइ कृपा-बल प्रभुहिं अपारा।
मनु ते भए परबताकारा ।।
गिरि सपंख इव जनु धरि देही।
प्रभु सँग करहिं पयान सनेही।।
भयउ सुखद सगुनइ तेहि काला।
लखि-लखि प्रभु-बल-सैन निराला।।
बाम अंग सिय फरकन लागा।
रावन दाहिन परम अभागा।।
नीति कहै जब सुभ कछु भवहीं।
अस सुभ सगुन होत सभ लखहीं।।
सीय जानि जनु राम-पयाना।
पावहिं सुभ संकेत सुहाना।।
सेना बानर-भालू चलहीं।
गरजत-तरजत कहि नहिं सकहीं।।
भालू-कपि-नख होंहिं भयंकर।
सस्त्र-कर्म तिन्ह करहिं निरंतर।
पादप इव धरि निज-निज काया।
चले गगन-पथ करि जनु माया।।
केहरि-नाद करहिं मग माहीं।
डगमग महि निज भार कराहीं।।
चहुँ-दिसि दिग्गज करहिं चिघाड़ा।
उमड़इ सागर, बजइ नगाड़ा।।
चंचल हो जनु परबत घहरैं।
महि डोलै,तरु-गृह जनु भहरैं।।
सुर-नर-मुनि अरु किन्नर-देवा।
परम मुदित भे सभ गंधरवा।।
जनु सहि सकहिं न महि-बल सेषा।
कच्छप-पीठहिं अहिन्ह-नरेसा।।
खुरचहिं निज दसनन तें मोहित।
लिखहिं बयान राम जनु सोभित।।
दोहा-साथ लेइ कपि-रीछ-बल,सागर-तट प्रभु जाहिं।
उतरि तहाँ कपि-रीछ सभ,घुमरि-घुमरि फल खाहिं।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र।
9919446372
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