पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-20
चहहिं उठावन प्रभु भगवाना।
उठहिं न प्रेम-मगन हनुमाना।।
लखि हनु-सीष राम-पंकज कर।
प्रमुदित बहु भे गौरीसंकर ।।
पुनि उठाइ हनुमत प्रभु रामहिं।
हरषित हिय तिन्ह गरे लगावहिं।।
कहु केहि बिधि तुम्ह पहुँचे लंका।
लंक जराइ पीटे तहँ डंका ।।
तब हनुमत प्रसन्न मन-बदना।
होइ बिनीत कहे अस बचना।।
सिंधु लाँघि जाइ वहि पारा।
कपि-सुभाउ तरु-बागि उजारा।।
मों जे मारा तिनहिं मैं मारा।
दनुजन्ह मारि क लंका जारा।।
जे कछु कीन्हा नाथ मैं तहवाँ।
पाइ कृपा तोर प्रभु इहवाँ ।।
प्रभु-प्रताप जब रूई धारै।
बड़वानल बिनु संसय जारै।।
देहु नाथ भगती अनपायनी।
एवमस्तु कह प्रभू नरायनी।
राम-सुभाउ जगत जे जानहिं।
औरहु देव नहीं ते मानहिं।।
जय-जय-जय कृपालु रघुनंदन।
करन लगे मिलि सभ कपि बंदन।।
तब सुग्रीवहिं लखि रघुराई।
कहा चलउ अब लंका धाई।।
अब न बिलंबु करउ कपिराजा।
चलउ लंक लइ कपी-समाजा।
लखि अस कौतुक सभ सुर-देवहिं।
नभ तें सभें सुमन बहु बरसहिं ।।
सोरठा-आए भालू-कीस, धाइ क धाइ समूह महँ।
तिनहिं बुलाइ कपीस,कह अब चलहु तुरत सभें।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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