डॉ0 हरि नाथ मिश्र

अब तू बेटी


करो नहीं अंतर कभी,बेटा-बेटी एक।


कभी बहन,बूआ कभी,रखती माँ-हिय नेक।।


 


कला-गीत-संगीत सँग,है शिक्षा की शान।


रक्षा-सेवा-क्षेत्र में,रखे देश का मान ।।


 


इसी भाव को ले सभी,मिलकर करो गुहार।


आ अब तू बेटी यहाँ, तेरा है सत्कार ।।


 


दोनों कुल की रक्षिका,सास-ससुर,पितु-मात।


कुल-मर्यादा हेतु वह,सहे भी वज्राघात ।।


 


इसी सदी इक्कीस ने,लाया है बदलाव।


सक्षम बन कर बेटियाँ,अपना करें बचाव।।


 


आओ बेटी अब यहाँ, करो अवनि पर वास।


बनो शासिका विश्व की,मन में भरे हुलास।।


 


तू जननी है जीव की,तुझसे जग-विस्तार।


सभी प्राणियों का तुम्हीं,एकमात्र आधार।।


          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


               991944 63 72


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