*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-26
मुक्त करउँ सरनागत-पापी।
कोटिक जनम अघी-संतापी।।
कपटी-कुटिल-छली नहिं पावैं।
निरछल-निरमल मन मोंहिं भावैं।।
सुनु कपीस मम हानि न भवही।
जदपि भेद लेवन ई अवही।।
एकहि पल मा लछिमन बधहीं।
जे केहु निसिचर जग मा अहहीं।।
राखउँ सरनागत जिमि प्राना।
करउँ अभीत ताहि जग जाना।।
जाहु लाउ ऊ जे केहु होवै।
परहित करि नर कछु नहिं खोवै।
कहत राम जय अंगद चलहीं।
पवन-पुत्र लइ सभ कपि-दलहीं।।
सादर आइ बिभीषन तहवाँ।
कृपानिधान रहहिं तब जहवाँ।।
पावा लोचन-सुख अभिरामा।
निरखि क अनुज सहित श्रीरामा।।
अपलक नेत्र लखै भय-मोचन।
साँवर तन-कंजारुन लोचन।।
देखहि बहुरि राम छबि-धामा।
बाहु अजान अतुल बल रामा।।
केहरि-कंध,बिसालइ बच्छा।
मदन असंख्य मोहित मुख अच्छा।।
सजल नयन अरु पुलकित गाता।
कहा नाथ मैं रावन-भ्राता।।
तामस देह जनम निसिचर-कुल।
जिमि उल्लू रह तम बिनु ब्याकुल।।
हरहु पीर प्रभु भव-भय-भंजन।
रच्छ मोंहि हे प्रभु चितरंजन।।
दोहा-सुनि अस बाति बिभीषनइ, राम उठे मुसकाय।
पाद छुवत जब ऊ रहा,निज उर लिए लगाय।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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