डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-26


मुक्त करउँ सरनागत-पापी।


कोटिक जनम अघी-संतापी।।


     कपटी-कुटिल-छली नहिं पावैं।


     निरछल-निरमल मन मोंहिं भावैं।।


सुनु कपीस मम हानि न भवही।


जदपि भेद लेवन ई अवही।।


     एकहि पल मा लछिमन बधहीं।


      जे केहु निसिचर जग मा अहहीं।।


राखउँ सरनागत जिमि प्राना।


करउँ अभीत ताहि जग जाना।।


     जाहु लाउ ऊ जे केहु होवै।


     परहित करि नर कछु नहिं खोवै।


कहत राम जय अंगद चलहीं।


पवन-पुत्र लइ सभ कपि-दलहीं।।


      सादर आइ बिभीषन तहवाँ।


      कृपानिधान रहहिं तब जहवाँ।।


पावा लोचन-सुख अभिरामा।


निरखि क अनुज सहित श्रीरामा।।


      अपलक नेत्र लखै भय-मोचन।


      साँवर तन-कंजारुन लोचन।।


देखहि बहुरि राम छबि-धामा।


बाहु अजान अतुल बल रामा।।


     केहरि-कंध,बिसालइ बच्छा।


     मदन असंख्य मोहित मुख अच्छा।।


सजल नयन अरु पुलकित गाता।


कहा नाथ मैं रावन-भ्राता।।


     तामस देह जनम निसिचर-कुल।


      जिमि उल्लू रह तम बिनु ब्याकुल।।


हरहु पीर प्रभु भव-भय-भंजन।


रच्छ मोंहि हे प्रभु चितरंजन।।


दोहा-सुनि अस बाति बिभीषनइ, राम उठे मुसकाय।


         पाद छुवत जब ऊ रहा,निज उर लिए लगाय।।


                     डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


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