डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-19


मोंतें कहीं चलत सिय माता।


अनुज संग चरनन्ह धइ ताता।।


   कहहु नाथ त्यागे मोंहि काहें।


    बहु अनुराग चरन महँ आहें।।


मानू दोषु एक अह मोरा।


तजि न सके प्रान जब छोरा।।


    नैन बारि अरु स्वांस समीरा।


    बिरह आगि कस जरे सरीरा।।


बरनि न जाय कष्ट सिय माता।


लाउ ताहिं बहु बेग बिधाता।।


     एक-एक पल कलप समाना।


     बीतहिं सिय सुनु कृपानिधाना।।


सुनि कपि-बचन नेत्र जल आवा।


बिकल राम सुनि सीय-कहावा।।


    मन-क्रम-बचन,चरन-अनुरागी।


    तदपि भईं सिय अस दुखभागी।।


सुनु हनुमान तोर उपकारा।


सुर-नर-मुनिन्ह सबहिं तें प्यारा।।


     कस हम होब उरिन सुत तुम्ह तें।


     तुमहिं कहहु उपाय कछु हम तें।।


पुलकित गात अश्रु भरि लोचन।


पुनि-पुनि कह प्रभु कष्ट-बिमोचन।।


दोहा-लखि के प्रभु प्रमुदित मना,हरषित हो हनुमान।


         धाइ परेउ प्रभु-कमल पद, कहत रच्छ भगवान।।


                          डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                            9919446372


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