डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दोहे (प्रकाश-पर्व दीपावली)


दीप दिवाली जब जलें, चहुँ-दिशि होय प्रकाश।


देख दीप हर्षित सभी,प्राणी महि-आकाश।।


 


ज्योति जले जगमग जगत,हिय में भरे उजास।


पा उजास मन मनुज को,मिलता सदा हुलास।।


 


दीप-उजाला ही करे,अंतरमन उजियार।


अंतरमन उजियार से,भगे कलुष-अँधियार।।


 


लगे रौशनी में रुचिर,दिव्य नहाई रात।


रात अमावस-दिव्यता,निरख न चित्त अघात।।


 


लक्ष्मी-पूजन पर्व यह,करता है कल्याण।


हरें मूढ़ता दीप जल,कहते वेद-पुराण ।।


 


इस प्रकाश के पर्व पर,रंक-फकीर-महीप।


माटी का दीया लिए,करें प्रज्वलित दीप।।


 


मिटे तिमिर अज्ञान का,होते दीप-प्रकाश।


दीवाली हर्षित करे,मन जो रहे निराश ।।


             © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                 99194463 72


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