दोहे (प्रकाश-पर्व दीपावली)
दीप दिवाली जब जलें, चहुँ-दिशि होय प्रकाश।
देख दीप हर्षित सभी,प्राणी महि-आकाश।।
ज्योति जले जगमग जगत,हिय में भरे उजास।
पा उजास मन मनुज को,मिलता सदा हुलास।।
दीप-उजाला ही करे,अंतरमन उजियार।
अंतरमन उजियार से,भगे कलुष-अँधियार।।
लगे रौशनी में रुचिर,दिव्य नहाई रात।
रात अमावस-दिव्यता,निरख न चित्त अघात।।
लक्ष्मी-पूजन पर्व यह,करता है कल्याण।
हरें मूढ़ता दीप जल,कहते वेद-पुराण ।।
इस प्रकाश के पर्व पर,रंक-फकीर-महीप।
माटी का दीया लिए,करें प्रज्वलित दीप।।
मिटे तिमिर अज्ञान का,होते दीप-प्रकाश।
दीवाली हर्षित करे,मन जो रहे निराश ।।
© डॉ0 हरि नाथ मिश्र
99194463 72
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें