पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-15
अहहि पूँछि बानर कै सोभा।
तासु नास बानर-मन-छोभा।।
बाँधु पूँछि पट बोरि क तेला।
आगि लगा पुनि देखउ खेला।।
पुच्छहीन बानर जब जाई।
तुरत तासु स्वामी इहँ आई।।
देखब हमहुँ तासु महिमा अब।
जासु बखान कीन्ह कपि अब-तब।।
सुनत योजना हनु मुस्काए।
कृपा सारदा माँ जनु पाए।।
जित-जित बस्त्र लपेटहिं ताहीं।
उत-उत पूँछहिं कपी बढ़ाहीं।।
बसन-तेल नहिं बचा नगर महँ।
लखत रहे निसिचर बहु जहँ-तहँ।
ढोल बजावत पीटत तारी।
लखत रहे सभ बारी-बारी।।
लागत आगि तुरत हनुमाना।
जरत पूँछ लइ किए पयाना।।न
अति लघु रूप धारि हनुमंता।
उछरैं-कूदैं भजि भगवंता।।
मारुत-बेग भयो तब प्रबला।
जनु उनचास पवन बह सबला।।
कंचन-भवन लपकि कपि चढ़िगे।
बाल-बृद्ध-नारी सभ डरिगे।।
भभकि-भभकि इक-इक घर जरई।
तांडव-नृत्य अनल जनु करई।।
भागहिं इत-उत सबहिं निसाचर।
चीखहिं कहि बचाउ माँ आकर।।
होय न सकत ई बानर कोऊ।
बानर-रूप देव कोउ होऊ।।
निमिष एक मा लंका जरई।
सुर-अपमान क ई फल भवई।
दोहा-छाँड़ि बिभीषन गृहहि तहँ,सभ भे भस्मीभूत।
उलट-पुलट करि लंक कपि,कुदा सिंधु प्रभु-दूत।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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