डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-15


अहहि पूँछि बानर कै सोभा।


तासु नास बानर-मन-छोभा।।


     बाँधु पूँछि पट बोरि क तेला।


      आगि लगा पुनि देखउ खेला।।


पुच्छहीन बानर जब जाई।


तुरत तासु स्वामी इहँ आई।।


     देखब हमहुँ तासु महिमा अब।


     जासु बखान कीन्ह कपि अब-तब।।


सुनत योजना हनु मुस्काए।


कृपा सारदा माँ जनु पाए।।


    जित-जित बस्त्र लपेटहिं ताहीं।


    उत-उत पूँछहिं कपी बढ़ाहीं।।


बसन-तेल नहिं बचा नगर महँ।


लखत रहे निसिचर बहु जहँ-तहँ।


     ढोल बजावत पीटत तारी।


    लखत रहे सभ बारी-बारी।।


लागत आगि तुरत हनुमाना।


जरत पूँछ लइ किए पयाना।।न


    अति लघु रूप धारि हनुमंता।


     उछरैं-कूदैं भजि भगवंता।।


मारुत-बेग भयो तब प्रबला।


जनु उनचास पवन बह सबला।।


     कंचन-भवन लपकि कपि चढ़िगे।


     बाल-बृद्ध-नारी सभ डरिगे।।


भभकि-भभकि इक-इक घर जरई।


तांडव-नृत्य अनल जनु करई।।


    भागहिं इत-उत सबहिं निसाचर।


    चीखहिं कहि बचाउ माँ आकर।।


होय न सकत ई बानर कोऊ।


बानर-रूप देव कोउ होऊ।।


     निमिष एक मा लंका जरई।


     सुर-अपमान क ई फल भवई।


दोहा-छाँड़ि बिभीषन गृहहि तहँ,सभ भे भस्मीभूत।


         उलट-पुलट करि लंक कपि,कुदा सिंधु प्रभु-दूत।।


                      डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


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