*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-18
जामवंत कह नाथ दयालू।
जापर हों रघुनाथ कृपालू।।
तापर कृपा सभें जन करहीं।
सुर-नर-मुनि सभ प्रमुदित रहहीं।।
भयो काजु जे रहा असंभव।
बिनु प्रभु-कृपा नहीं कछु संभव।।
पाइ कृपा प्रभु कै हनुमाना।
लाए सुधि सीता जग जाना।
बिजयी-बिनयी सभ गुन-आगर।
जनम सुफल कीन्ह कपि-नागर।।
तुरत नाथ हनुमंत बुलाए।
हरषित हिय तिन्ह गरे लगाए।।
पूछे कहहु तात केहि भाँती।
रहहिं सीय तहँ बासर-राती।।
कस सिय करहिं सुरच्छा प्राना।
होइ अभीत कहहु हनुमाना।।
प्रभु तव नाम सीय रखवारा।
तुम्हरो ध्यान कपाट-पहारा।।
निज लोचन लगाइ चरनन्ह महँ।
करहिं सुरच्छा निज सिय रहि तहँ।।
दोहा-चलत तुरत चूड़ामनी, दीन्ह मोंहि सिय मातु।
कहि के तुमहिं सनेस कछु,लोचन-जल उतिरातु।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें