मैं कवि हूँ
आदिकाल से ही
अपने मन के भावों को
सहजता से प्रकट करता
कल्पना लोक मैं
विचरण करता
यथार्थ और आदर्श
से जूझता
मैं कवि हूँ
कहते हैं सभी
जहाँ न पहुँचे रवि
वहाँ पहुँचे कवि
वहाँ भी मैं
पहुँचा हूँ
मैं कवि हूँ
नायिका के हृदय मैं
कभी प्रेम जगाता
कभी पीड़ा बन जाता
अल्हड़ सी बाला
सा खिलखिलाकर
कभी हँसता सा
माँ की आँखों में
वात्सल्य बन तैरता
कलम से स्याही
कागज़ पर बिखराता
मैं कवि हूँ
गाँवों में, गलियों में
फूलों में कलियों में
गोरी की कलाई में
बागों की अमराई में
पायल की छन छन में
कंगना की खन खन में
खुशियों के हर पल में
स्वयं को समाता
मैं कवि हूँ
डॉ0निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
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