डॉ0 निर्मला शर्मा

गिरवी है ईमान


 


भ्रष्टाचार की 


बनी नगरिया


देखूँ मैं हैरान


 


आज पतित


मानव का देखो


गिरवी है ईमान


 


सतरंगी दुनिया


की चाहत मैं


गलत करे वो काम


 


कम आमदनी


रोडा बनती


गली निकाले जान


 


रिश्वत का


इंतजाम करे वो


अपनी जरूरत मान


 


सागर से


लोटा भरने की


बात करे वो आम


 


बहुमूल्य 


दामों वाला वो


बेचे दिन ईमान


 


लालच मैं अंधा


होकर वह करता


कुमति के काम


 


खोदे गड्ढा औरों


को पर गिरता


औंधे मुँह आप।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


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