डॉ0 निर्मला शर्मा

दीप और पतंगा


 


दीपक और पतंगे की है अजब कहानी


दीपक पर मर मिटने की पतंगे ने ठानी


निस्वार्थ प्रेम करे है दीप से पतंगा


मंडराता चहुँ ओर मद मस्त सुरंगा


कितनी भी हो पीड़ा सह लेता मुसकाकर


कहता न कभी कुछ त्याग करे इतराकर


दीपक कहता मैं हूँ प्रकाश बिखराता


आओ न निकट तपिश से तन जल जाता


है दीप पतंगे की अमर संसार में जोड़ी


जिसे तोड़ न पाया कोई दिशा न मोडी


दीपक पर प्राण न्यौछावर करे पतंगा


लौ बुझा दीप भी पतंगे संग समाना


एक दूजे के साथ त्याग, प्रेम और समर्पण


ले जीवन का आधार मिटे एक दूजे पर


दे सीख जगत को मर मिटे प्रेम दीवाने


उनकी अमर कहानी को दुनिया माने।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


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