डॉ० रामबली मिश्र

*मेरे मन की*


 


मेरे प्यारा मोहक सपना


सपने में सुंदर सा अपना


अपने में हो अपने मन की


अपने मन में हो दिव्य कामना।


 


सदा कामना साथ नित्य हो


सहज सलोनी सुघर स्तुत्य हो


स्तुति में बैठे उत्तम प्रतिमा


प्रतिमा भावुक सरल दिव्य हो।


 


दिव्य भावना देवालय हो


सत-कल्याणी शिव-आलय हो


अलाय में हो शुभ्र दीवानी


इच्छाओं का विद्यालय हो।


 


विद्यालय में प्रीति-वस्तु हो


प्रीति-वस्तु ही विषय-वस्तु हो


विषय-वस्तु में निर्मल गंगा


गंगा का संदेश अस्तु हो।


 


सपने में साकार खड़ी हो


मूर्ति स्वयं की सहज पड़ी हो


दिखे मूर्ति में मेरा आतम


दिव्य आत्म में प्रीतिगुणी हो।


 


गुण में मादक मधुर गंध हो


खुशबू से मन प्रेम-अंध हो


अंधेपन में हो पागलपन


पागलपन में सरस छंद हो।


 


महा छंद की बने श्रृंखला


फूलों जैसी कविता सबला


कविता से रस बहता जाये


हो प्रवाह में मधु-ध्वनि चपला।


 


लगे चपलता मधुर सुहानी


 बोले सदा प्रीति की वानी


वाणी से कोमल भावों की


दिखती जाये दिव्य रवानी।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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