डॉ० रामबली मिश्र

*प्रथम प्रेम -पत्र*


 


लिखता हूँ तुझे यह खत, जीवन में पहली बार।


अरमान बहुत मन में, न्योछावर मन सौ बार।


नाराज न होना प्रिय, गलती को क्षमा करना।


नादान समझ कर के, प्रिय! माफ इसे करना।


बेकाबू यह मन-अश्व, है नहीं नियंत्रण में।


समझाना इसे कठिन, नहिं बुद्धि निरीक्षण में।


इस मन को पागल जान, इक बार तरस खाना।


दोबारा गलती पर, दण्डित करना मनमाना।


मत क्षमादान देना, नालायक पागल को।


समतलीकरण करना, इस बीहड़ जंगल को।


प्रियवर!स्वीकार करो, इस उरधि निवेदन को।


पढ़कर के देना फाड़,


इंकार न कर वंदन को।


पागल हाथी का मद, चूर अगर चाहो कर दो।


या जैसी चाहत हो, वैसा ही वर दो।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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