डॉ0हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण(श्रीरामचरितबखान)-27


कह बिठाइ लछिमन के संगा।


कहु नरेस परिवार-प्रसंगा।।


      बोले प्रभु निवास खल-देसा।


      होय तुम्हारइ सुनहु नरेसा।।


कस तुम्ह तहँ अस सहेसि अनीती।


तव हिय बस अति निष्छल प्रीती।।


      नरक-निवास होय बरु नीका।


       केतनहुँ सुखद कुसंगइ फीका।।


अब तव चरन-सरन मैं आया।


हे प्रभु करउ मोंहि पे दाया।।


     जब तक बिषय-भोग-रत जीवइ।


      तब तक उहइ गरल-रस पीवइ।।


काम-क्रोध-मद-मोह-बिमोचन।


होय दरस करि राजिव लोचन।।


     होत उदय प्रकास प्रभु सूरज।


      भागै मद-अँधियारा दूखज।।


कुसलइ रहहुँ पाइ रज चरना।


कृपा-हस्त प्रभु मम सिर धरना।


     भौतिक-दैहिक-दैविक-सूला।


      पा प्रभु-सरन होंय निरमूला।।


मों सम निसिचर अधम-अधर्मी।


लेइ सरन प्रभु कीन्ह सुधर्मी।।


      सुनहु तात जे आवै सरना।


      तजि मद-मोह-कपट अरु छलना।।


मातुहिं-पिता-बंधु-सुत-नारी।


सम्पति-भवन,खेत अरु बारी।


     देहुँ भगति बर संत की नाईं।


     पाटहुँ तिसु मैं भव-भय खाईं।।


रखहुँ ताहि मैं निज उर माहीं।


जिमि लोभी धन-संपति ध्याहीं।।


     सुनहु नरेस सकल गुन तुझमा।


     तुम्ह मम प्रिय सभतें इह जग मा।


दोहा-जे जग महँ परहित करै, निरछल मनहिं सनेम।


        सुनहु तात तेहिं हिय रखहुँ,सदा करहुँ तेहिं प्रेम।।


                         डॉ0हरि नाथ मिश्र


                           9919446372


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