व्यथा(दोहे)
कथा व्यथा की क्या कहें,व्यथा देय बड़ पीर।
सह ले जो तन-मन-व्यथा,पुरुष वही है धीर।।
प्रेमी-हिय भटके सदा,प्रिया न दे जब साथ।
व्यथा लिए निज हृदय में,मलता रहता हाथ।।
बिन औषधि तन भी सहे, कष्टप्रदायी रोग।
व्यथा शीघ्र उसकी कटे, पा औषधि संयोग।।
कवि की व्यथा विचित्र है,व्यथा कवित-आधार।
अद्भुत यह संबंध है,पीड़ा कवि-शृंगार ।।
व्यथा-व्यथित-मन स्रोत है,उच्च कल्पना-द्वार।
कविता जिससे आ जगत,दे औरों को प्यार।।
इसी व्यथा के हेतु ही,जग पूजे भगवान।
धन्य,व्यथा तुम हो प्रबल,देती सबको ज्ञान।।
व्यथा छुपाए है खुशी,समझो हे इंसान।
जो समझे इस मर्म को,उसका हो कल्यान।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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