डॉ0हरि नाथ मिश्र

व्यथा(दोहे)


कथा व्यथा की क्या कहें,व्यथा देय बड़ पीर।


सह ले जो तन-मन-व्यथा,पुरुष वही है धीर।।


 


प्रेमी-हिय भटके सदा,प्रिया न दे जब साथ।


व्यथा लिए निज हृदय में,मलता रहता हाथ।।


 


बिन औषधि तन भी सहे, कष्टप्रदायी रोग।


व्यथा शीघ्र उसकी कटे, पा औषधि संयोग।।


 


कवि की व्यथा विचित्र है,व्यथा कवित-आधार।


अद्भुत यह संबंध है,पीड़ा कवि-शृंगार ।।


 


व्यथा-व्यथित-मन स्रोत है,उच्च कल्पना-द्वार।


कविता जिससे आ जगत,दे औरों को प्यार।।


 


इसी व्यथा के हेतु ही,जग पूजे भगवान।


धन्य,व्यथा तुम हो प्रबल,देती सबको ज्ञान।।


 


व्यथा छुपाए है खुशी,समझो हे इंसान।


जो समझे इस मर्म को,उसका हो कल्यान।।


         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


             9919446372


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