डॉ0हरि नाथ मिश्र

*त्रिपदी*


जिसका तन-मन निर्मल रहता,


मिलती उसको सदा सफलता।


सुखी वही जीवन भर रहता।।


 


बल-विद्या-धन-पौरुष अपना,


करें पूर्ण सदा ही सपना।


कभी घमंड न इनपर करना।।


 


मानव-जीवन सबसे सुंदर,


यदि है पावन भी अभ्यंतर।


मिलता सुख है तभी निरंतर।।


 


देश-भक्ति का भाव न जिसमें,


पत्थर दिल रहता है उसमें।


 देश-प्रेम भी होए सबमें ।।


 


निज माटी का तिलक लगाओ,


तिलक लगाकर अति सुख पाओ।


मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाओ।।


 


अपनी धरती,अपना अंबर,


वन-पर्वत,शुचि सरित-समुंदर।


संस्कृति रुचिरा बाहर-अंदर।।


 


सदा बड़ों का आदर करना,


स्नेह-भाव छोटों से रखना।


रहे यही जीवन का सपना।।


             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र।


                 9919446372


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