*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-28
जय कृपालु भगवन जगदीसा।
कह अस कपिन्ह समेत कपीसा।।
पुनः बिभीषन गहि प्रभु-चरना।
कह रघुनाथ सुनहु मम बचना।।
सरनागत-प्रेमी रघुबीरा।
जग आए धरि मनुज-सरीरा।
जे कछु मम उर रही बासना।
लुप्त भईं तव पा उपासना।।
पावन भगति देहु प्रभु मोहीं।
प्रनतपाल-कृपालु प्रभु तोहीं।।
एवमस्तु तब कह रघुबीरा।
कह मम बचन सुनहु धरि धीरा।।
तव बिचार जद्यपि अस नाहीं।
करहुँ तुम्हार तिलक यहिं ठाहीं।।
अस कहि राम सिंधु-जल लइ के।
कीन्हा तिलक बिभीषन ठहि के।
भवई सुमन-बृष्टि तब नभ तें।
भे लंकेस बिभीषन झट तें।।
दोहा-रावन-क्रोधहिं अनल महँ,जरत बिभीषन-लंक।
रच्छा करि प्रभु दीन्ह तिन्ह,लंका-राज निसंक।।
रावन पाया राज लंक,सिवहिं देइ दस सीस।
तेहि संपत्ति बिभीषनहिं, दीन्ह छिनहिं जगदीस।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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