डॉ0हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-28


जय कृपालु भगवन जगदीसा।


कह अस कपिन्ह समेत कपीसा।।


    पुनः बिभीषन गहि प्रभु-चरना।


     कह रघुनाथ सुनहु मम बचना।।


सरनागत-प्रेमी रघुबीरा।


जग आए धरि मनुज-सरीरा।


    जे कछु मम उर रही बासना।


     लुप्त भईं तव पा उपासना।।


पावन भगति देहु प्रभु मोहीं।


प्रनतपाल-कृपालु प्रभु तोहीं।।


     एवमस्तु तब कह रघुबीरा।


      कह मम बचन सुनहु धरि धीरा।।


तव बिचार जद्यपि अस नाहीं।


करहुँ तुम्हार तिलक यहिं ठाहीं।।


     अस कहि राम सिंधु-जल लइ के।


      कीन्हा तिलक बिभीषन ठहि के।


भवई सुमन-बृष्टि तब नभ तें।


भे लंकेस बिभीषन झट तें।।


दोहा-रावन-क्रोधहिं अनल महँ,जरत बिभीषन-लंक।


       रच्छा करि प्रभु दीन्ह तिन्ह,लंका-राज निसंक।।


       रावन पाया राज लंक,सिवहिं देइ दस सीस।


        तेहि संपत्ति बिभीषनहिं, दीन्ह छिनहिं जगदीस।।


                          डॉ0हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


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