डॉ0हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-30


 


लखि दूतन्ह हँसि कह लंकेसा।


देहु मोंहि तिन्हका संदेसा।


   मिले तिनहिं कि आय बरिआई।


    डरे मोर जस सुनतै भाई ।।


का गति दुष्ट बिभीषन अहही।


कालइ तासु अवसि अब अवही।।


    मम तिन्ह मध्य सिंधु-मृदुलाई।


    रच्छहिं तेहिं दोउ तापस भाई।।


सुनहु नाथ अब बचन कठोरा।


समुझहु बहुत कथन जे थोरा।।


     पाइ बिभीषन राम तुरतही।


      कीन्हा तिलक तासु झटपटही।।


जानि हमहिं क नाथ तव दूता।


लंपट-नीच-पिसाचहि-भूता।।


     काटन लगे कान अरु नासा।


     राम-सपथ पे रुका बिनासा।।


बरनि न जाय राम-सेना-बल।


कोटिक गज-बल सजा सेन-दल।।


     कपि असंख्य बाहु-बल भारी।


     बिकट रूप अतिसय भयकारी।।


जे कपि लंक जरायेसि इहवाँ।


अच्छय मारि जरायेसि बगवाँ।।


     अति लघु रूपइ तहवाँ रहई।


      नहिं बिस्वास उहहि कपि अहई।।


मयंद-नील-नल,दधिमुख-अंगद।


द्विविद-केसरी,बिकटस-सठ-गद।।


      जामवंत-निसठहि-बलरासी।


       रामहिं कृपा पाइ बिस्वासी।।


सभ कपि-बल सुग्रीव समाना।


एक नहीं कोटिक तिन्ह जाना।


      सबपे कृपा राम-बल रहई।


       तिनहिं त्रिलोक त्रिनुहिं सम लगई।।


अस मैं सुना नाथ मम श्रवनन्ह।


पदुम अष्ट-दस सनपति कपिनन्ह।।


      ते सभ बिकल जुद्ध के हेतू।


      जोहहिं आयसु कृपा-निकेतू।।


आयसु पाइ तुरत रघुनाथा।


जीतहिं तुमहिं फोरि रिपु-माथा।।


दोहा-कहत रहे मिलि सभ कपी,रावन मारब लात।


         लातन्ह-घूसन्ह मारि के,लाइब सीते मात।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


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