डॉ०रामबली मिश्र

बनकर तेरा


 


बनकर तेरा सदा रहेंगे,


          अपनी बाहों में रहने दो।


 


तुझको ही केवल देखेंगे,


          अपने अंकों में बहने दो।


 


साथ निभाने का वादा है,


          बनकर मीत साथ रहने दो।


तेरे मुखड़े की मुस्कानों,


          के जादू को नित लखने दो।


 


प्यार भरी तेरी नजरों से,


          नजर मिलाकर अब चलने दो।


 


पलकों की छाया के नीचे,


          कुछ विश्राम सहज करने दो।


 


 थके हुये मन को आश्रय दे,


          थोड़ा सा शीतल होने दो।


 


हृदय दग्ध है विषमय जग से,


          कुछ तो रस इसमें भरने दो।


 


भ्रमित बुद्धि में समझ नहीं है,


          इसको समझदार बनने दो।


 


हे प्रिय!मत ठुकरा निरीह को,


          गले लगा इसको जीने दो।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


*आत्मोत्थान*


 


स्व से पर की ओर बढ़, कर अपना उत्थान।


खुद के आत्म स्वरूप को,जान और पहचान।।


 


देह भाव से हो विरत, आत्म भाव को खोज।


देही रहता देह में, जैसे जलज-सरोज।।


 


बनो कमल के फूल सा, स्पृहा भाव से मुक्त।


कर लो अपनी बुद्धि को, आतम से संयुक्त।।


 


नीर-क्षीर के भेद को, पढ़ते रहना नित्य।


इसी भेद को जान कर,बन जाओगे स्तुत्य।।


 


इसी हंस की वृत्ति से, रहो ज्ञान के पास।


इसी ज्ञान से ध्यान कर, बन आत्मा का खास।।


 


आत्म ज्ञान सर्वोच्च से, कर अपना उद्धार।


मन को सर्व समेट कर, पहुँच आत्म के द्वार।।


 


द्वार खड़े देखा करो, आत्मा रूप प्रकाश।


इस प्रकाश से ही करो,अपना दिव्य विकास।।


 


दैवी ऊर्जा स्रोत से, आत्म देश भरपूर।


आत्म निवासी बन सदा, रहो देह से दूर।।


 


सदा देह से दूर हो, बन जा जनक विदेह।


सहज बनाओ आत्म को, अपना मोहक गेह।।


 


आत्म निवासी बन थिरक,झूम-झूम कर नाच।


सतत झूठ से पृथक हो, तपो साँच की आँच।।


 


सच्चा मानव ही सदा, करता सबसे स्नेह।


दिखलाता है विश्व को,अपना अनुपम गेह।।


 


पा कर उत्तम ज्ञान को, मोहित सब संसार।


सब प्रकाश में डूब कर, करते आत्मोद्धार।।


 


आत्मोन्नयन बिना नहीं , होना है कल्याण।


आत्मा के संज्ञान से, कर अपना निर्माण।।


 


मनसा वाचा कर्मणा, रहो आत्म में लीन।


आत्मोत्थान करो सतत,रहकर आत्माधीन ।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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