डॉ०रामबली मिश्र

*मिलन समारोह*


 


सजनी-सजन मिलन जब होगा।


जंगल में मंगल तब होगा।।


 


सजनी संग सजन अति हर्षित।


वदन प्रफुल्लित मन आकर्षित।।


 


सकल मनोरथ पूरे होते।


 लगते नहीं अधूरे गोते।।


 


डूब सिंधु में रस टपकत है।


लहरों से लहरें चिपकत हैं।।


 


भँवर सुहावन अतिशय सुंदर ।


इतराता मन डूब समंदर।।


 


यह वैकुंठ लोक सुखदायी।


अति आनंद धाम प्रियदायी।।


 


सजनी-सजन ब्रह्म का डेरा।


चौतरफा है प्रेम घनेरा।।


 


कितना उत्तम प्रेम घरौंदा।


मिलन परस्पर सहज परिंदा।।


 


आशाओं से बना हुआ है।


आकांक्षा में सना हुआ है।।


 


हृदय मिलन का यह बेला है।


प्रेम तरंगों का मेला है।।


 


स्वर्ग तरसता दृश्य देखकर।


अतिशय पावन दिव्य समझकर।।


 


देखो जंगल का यह दंगल।


यहाँ परस्पर प्रीति सुमंगल।।


 


भावों का यह देवालय है।


प्रेम अनोखा प्रिय आलाय है।।


 


प्रेम मिलन में शिवा-महेशा।


वंदन करते देव गणेशा।।


 


सजनी-सजन प्रतीक समाना।


यह जग-बंधन परम सुहाना।।


 


जो प्रतीक को सदा समझता।


सहज भाव से पार उतरता।।


 


सजन बुलाता नित सजनी को।


दिवा बुलाता प्रिय रजनी को।।


 


यह नैसर्गिक सुखद नियम है।


लिंग भेद से विरत स्वयं है।।


 


यह सिद्धांत अकाट्य महाना।


इसे जानते सिद्ध सुजाना।।


 


नर-नारी की जोड़ी जगती।


पटी हुई है सारी धरती।।


 


बनना है यदि सुंदर उत्तम।


भज नर-नारी बन पुरुषोत्तम।।


 


पुरुषोत्तम नारायण सबमें।


भास रहे हैं सारे जग में।।


 


सजनी-सजन जोड़ अति मधुरिम।


सकल सृष्टिमय अनुपम अप्रतिम।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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