*संशोधन*
*(दोहा)*
कर्म करो चलते रहो,देख कर्म का रूप।
मूल्यांकन करते रहो, दो अति सहज स्वरूप।।
क्रिया हेतु कोशिश करो, गलती खोजो नित्य।
सतत सुधारो खामियाँ, क्रिया बने नित स्तुत्य।।
संशोधन व्यक्तित्व में, लाता सतत निखार।
संशोधन से आगमन, करता शुभद विचार।।
जिद पर कभी अड़ो नहीं, पूर्वाग्रह को छोड़।
संशोधन की ओर ही, अपने मन को मोड़।।
संशोधन उपकरण है, यह जीवन का भाग।
संशोधन की राह के, प्रति रख नित अनुराग।।
सामाजिक अस्तित्व का, संशोधन वरदान।
स्वस्थ समाजीकरण के, लिये यही भगवान।।
बिन संशोधन के नहीं, बनता स्वस्थ समाज।
जीवन के हर क्षेत्र में, संशोधन का राज।।
संशोधन से व्यक्ति में, विकसित होत विवेक।
सद्विवेक से मनुज बन, जाता सुंदर नेक।।
संशोधन करते रहो, यह अत्युत्तम पंथ।
इसी प्रक्रिया से बनो, इक दिन पावन ग्रंथ।।
यही संस्करण आत्म का, करता जीर्णोद्धार।
फलीभूत होता सतत, शुभ शिव उच्च विचार।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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